सियासत या देश दोनों में अहम क्या है ? जनता भी पहचानती है सियासी नब्ज। ज्यादातर को चाहिए फायदा और लफ्फाजी से तय करेंगे कायदा । क्या कसूरवार सियासतदान हैं या आप ?
कोई बड़ी बात नहीं,कि कल भ्रष्टाचार हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है का नारा सुनाई देने लगे । मौजूदा वक्त में विरोध का तरीका संविधान का मजाक उड़ाना बन चुका है । सिस्टम की बेबसी जगजाहिर है । कल पत्थरबाजी के कसूरवार अल्पसंख्यक रहे, तो आज “अग्निपथ” पर अग्नि की ज्वाला भड़काने वाले कौन हैं ? जरा सोचिए क्या आप इस भ्रष्ट सिस्टम का हिस्सा नहीं ?
अब बात छत्तीसगढ़ की करें । भाजपा , कांग्रेस दोनों दल के सियासी कद समाज के लिए लफ्फाजी के साथ अपना हित साधने में जुटे हैं। कल तक भाजपा की सत्ता रही , चंद कारोबारी बेहिसाब फले फूले । आज कांग्रेस का अंदाज और हिसाब-किताब आपके सामने है । ये दीगर बात है, कि टी एस सिंहदेव या ओ पी चौधरी जैसे लोग इसका अपवाद हो सकते हैं । लेकिन क्या आप नहीं जानते, कि हर जिले में क्या चल रहा है ? लब्बोलुआब ये , कि मशीन का एक कल-पुर्जा खराब हो , तो बदला जा सकता है, लेकिन जब मशीन में ही जंग लग जाए , तो आमूल चूल परिवर्तन ही इकलौता विकल्प है ।