सियासी शह मात में माहिर विधायक की बाजीगरी , कांग्रेस के तस्वीरबाजों की नींद उड़ी । समझो जनाब , कि जंग जीतने के लिए सिर्फ काफिले की तस्वीर काफी नहीं …… !
रायगढ़ में पिछली बार सियासत का समीकरण कुछ ऐसा रहा, कि प्रकाश नायक शहर विधायक बन गए। एक लंबा वक्त गुजर चुका है और आने वाले दिनों में चुनावी बिगुल की आवाज दोबारा सुनाई देने वाली है। ऐसे में शहर की सत्ता और सिंहासन को लेकर बहस लाजिमी है। मौजूदा सदर विधायक प्रकाश नायक को नापसंद करने वालों की जमात ने फेसबुकिया मोर्चा खोल रखा है। इनमें एक शहरी सूरमा भी हैं, जो बड़े सियासी कदों के साथ तस्वीर दिखा कर खुद की दावेदारी पेश करने में जुटे हैं। वे फिरकापरस्ती में भी माहिर माने जाते हैं। हालांकि, लोगों के मुताबिक कांग्रेस की कब्र खोदने में प्रकाश के खिलाफ एक अग्रवाल साहब भी जुटे हैं। उनकी मानें,तो जनाधार हो ना हो सियासी टकराव जरूरी है। शायद कांग्रेस के बंटाधार की वजह ऐसे नेता और ऐसी ही विचारधारा रही है। विधायक प्रकाश ने एक आपराधिक मामले में बेटे को अपने साथ ले जाकर गिरफ्तार कराया और लोगों का दिल जीत लिया। सवाल ये है, कि शहर की सत्ता के लिए प्रकाश के अलावा दमदार उम्मीद्वार कौन है ? सवाल ये भी, कि सियासी जंग किन दो शख्सियतों के बीच होने वाली है ? भाजपा के पास चेहरा कौन सा है ?
अफवाहों को दरकिनार कर दें, तो कांग्रेस का चेहरा प्रकाश ही होंगे । वहीं भाजपाइयों की आस विजय या ओपी की रहनुमाई पर टिकी है। कल क्या होगा ? ये तो तय नहीं,पर बीजेपी की मौजूदा रणनीति के लिहाज से सदर सीट पर भाजपा के उम्मीद्वार ना ओपी रहने वाले हैं, और ना ही बागी विजय अग्रवाल। इधर प्रकाश नायक ने गांवों से शहर तक लोगों के बीच रह कर अपनी बेहतर छवि बनाने में कामयाबी हासिल की है। ये भी तय है, कि विजय को टिकट नहीं मिलने पर परोक्ष या अपरोक्ष तौर पर फायदा प्रकाश को ही मिलेगा।
यूं तो क्रिकेट और सियासत में जीत-हार का फैसला मुमकिन नहीं, पर नायक की बल्लेबाजी अभी विपक्ष के गेंदबाजों पर भारी पड़ रही है।