अब तक रहे सहिष्णु, क्यों जोश में आए “विष्णु” ….. ये भाजपा की सियासत का कोई नया रंग तो नहीं ? वनवासियों की कमान थामने का सियासी ढंग तो नहीं ? “कमल” का नया कमाल , क्या मचाएगा धमाल …..?
पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एक सरकारी अधिकारी पर भड़क गए। उन्हें इतना गुस्सा आया, कि उसको “सर कलम कर जमीन में गाड़ देने की” धमकी तक दे दी। शांत और सौम्य माने जाने वाले विष्णुदेव साय का “सर तन से जुदा” सरीखा ये बयान कुछ देर बाद ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को लपक लिया और इस तरह के बयान पर तंज कसते हुए उनके संस्कार पर सवाल खड़े कर दिए। हालांकि बड़ा सवाल ये है, कि उनके गुस्से का सैलाब अचानक उमड़ गया या इसे उनका एक आक्रामक सियासी दांव माना जाए।
कुनकुरी के सराईटोला में अटल चौक पर क्रेडा की टीम हाई मास्ट लगाने पहुंची। इस दौरान उन्होंने अटल चौक निर्माण तोड़ दिया। इसकी सूचना मिलते ही पूर्व भाजपा अध्यक्ष ने अफसर को फोन किया और आपा खोते हुए अपशब्दों का इस्तेमाल कर बैठे। वहां मौजूद किसी शख्स ने इसका वीडियो बना कर वायरल कर दिया। अमूमन सलीकेदार माने जाने विष्णुदेव साय को नजदीक से जानने वाले इसे गुस्से में आपा खोने की जगह सशक्त और मजबूत तेवर वाले आदिवासी नेता की पहचान कायम किए जाने की दिशा में रणनीतिक कदम करार दे रहे हैं। दरअसल , पिछले दिनों भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बदले जाने के बाद इस तरह की कयासबाजी स्वभाविक भी है। नया समीकरण समझना खास पेचीदा नहीं है। आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में OBC वोटर्स ४०-४५ फीसदी हैं, इनमें तकरीबन नब्बे से भी अधिक जातियों के लोग हैं, लेकिन सबसे ज्यादा साहू समाज की मौजूदगी है। और तकरीबन सूबे की सियासत में ४५-४९ सीटों पर OBC वर्ग का जीत-हार तय करने में दखल रहता है। इनमें २५-२७ पर साहू (तेली) समुदाय का और २०-२२ सीटों पर कुर्मी समाज का वर्चस्व है। इस लिहाज से भाजपा ने अरुण साव (साहू) को प्रदेश अध्यक्ष और नारायण चंदेल (कुर्मी) को नेता प्रतिपक्ष बनाया है। इस समीकरण के सहारे बीजेपी OBC वर्ग की ज्यादा से ज्यादा सीट हासिल करना चाहती है। लेकिन पार्टी के लिए ट्राइबल वोट हासिल करने की बड़ी चुनौती सामने है । माना जाता है, कि प्रदेश में तकरीबन ३२ फीसदी आदिवासी मतदाता हैं। 29- सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। मौजूदा वक्त में ट्राइबल बेल्ट बस्तर में तो भाजपा के खाते में शून्य दर्ज है। सियासी जानकारों के मुताबिक भाजपा अब आक्रामक तेवर की सियासत के साथ आदिवासियों के बीच किसी को स्थापित करना चाहती है। जिससे ट्राइबल का बेहतर जुड़ाव हासिल हो सके। प्रदेश अध्यक्ष पद से मुक्त होने के बाद विष्णुदेव साय इस भूमिका को बखूबी निभा सकते हैं।
हालांकि साय ने अपशब्दों का इस्तेमाल करने और तालिबानी धमकी के लिए खेद जाहिर कर दिया है। पर कहते हैं सुर्खियों में रहना सियासतदानों की अहम सियासी जरुरत है। जुमला भी तो है -“बदनाम हुए तो क्या ?, नाम तो हुआ “। देखना ये है , कि तल्ख तेवर की ये नई सियासत जनता को किस हद तक पसंद आती है ?