पहले सद्भावना अब दुर्भावना , सियासत की ये चाल , जनमत का हाल-बेहाल । ….क्या महाविकास का दावा महाविनाश में तब्दील ?
महाराष्ट्र में सिंहासन पर काबिज होने की जंग नई नहीं, पहले भी सत्ता संग्राम का तमाशा आम रहा है। चलिए मुद्दे की बात करते हैं। शिंदे की बगावत ने उद्धव की जान सांसत में डाल दी। पहले तो उद्धव ने मान मन्नौवल की कोशिश की, फिर इमोशनल कार्ड खेला। सारे जतन बेअसर रहे, तो आ गए अपनी औकात पर। डिप्टी स्पीकर के पास १६ विधायकों की सदस्यता रद्द करने की अर्जी लगा दी। पर ये दांव भी कानूनन कामयाब नहीं होने के आसार नजर आए, तो महाविकास अघाड़ी के चाणक्य शरद पवार की शरण ली। जानकारों के मुताबिक पवार ने शिवसेना कार्यकर्ताओं को सड़क पर उतार कर शक्ति प्रदर्शन की सलाह दी है। अब जबकि ३७ की संख्या शिंदे बटोर चुके हैं, तो सवाल सत्ता से इतर शिव सेना की बागडोर छिन जाने से जुड़ चुका है।
इतना तो तय दिख रहा है, कि सियासी शतरंज की बिसात पर शिंदे की ढाई चाल से उद्धव पस्त हैं। सही मायनों में बेपर्दा हो चुकी है सियासत । संसद के सिपहसालार तो माशाअल्लाह, जहां मिली मलाई थाली वहीं सजाई। बात ना बीजेपी की है, ना कांग्रेस की, ना ही किसी अन्य दल की। हमाम में नंगे तो सभी है।